अरे यह क्या हो रहा है कलमाड़ी साहब की तबियत बिगड़ रही है? कभी कहते हैं की यादाशत की बीमारी से पीढ़ित हें, कभी कहते हें की मुझे अपने संसाद के कर्तव्य याद आ रहे हें । कलमाड़ी जी बेक़रार हें तिहार से बहार आने को मगर हवा कुछ उनके खिलाफ बह रही है। श्री कलमाड़ी प्रशन्षा के पात्र हें इंतना सब कुछ होने के बाद भी चहेरे पर शर्म की हलकी सी लकीर भी नहीं हें। आखों मैं भी गजब की बेशर्मी दिखाई पढती है , और चलने का अंदाज़ भी ऐसा गली के दादा जैसा , की जिसने जो भी कुछ करना है कर लो। मुझे लगता हें की हमारे प्राथमिक स्चूलों मैं श्री कलमाड़ी पर एक पाठ तो होना ही चहिये, और महामहिम श्री राजा पर तो पूरी पुस्तक ।
कवि प्रदीप जिस प्रकार शास्त्रीजी और गाँधी जी पर गीत रचते थे , ठीक उसी प्रकार श्री कलमाड़ी और महामहिम राजा पर गीत रचे जाने चहिये । दे दिए हमे खेल गटक के करोणों का माल , ऐ कोम्मोंवेअल्थ के संत तूने कर दिया कामाल। और महामहिम राजा की महिमा तो अपरमपार हें .
Pradeep Tewari blog
Friday, July 29, 2011
Sunday, October 25, 2009
बिग बी इन बिग b
आजकल बिग बॉस नमक कार्य्रक्रम टीवी खूब ही प्रसिद है मुझे इस कार्यक्रम मैं या इसके कलाकारों मैं कोई उत्सुकता नहीं है , मुझे सिर्फ़ इसके सूत्रधार श्री अमिताभ बच्चन को वार्तालाप करते है देख कर असीम अन्नंद की अनुभूति होती है , अमिताभ की हिन्दी पर पकड़ और उनकी गहरी आवाज सुनकर मन गदगद हो जाता है , और मैं मंत्रमुग्ध हो जाता होऊं। अमिताभ के व्यक्तित्व मैं एक अनूठा ही आकर्षण है , और हिन्दी भाषा पर उनका सवाभाविक ज्ञान है , शाहरुख़ बेशक अच्छे कलाकार हैं पर मुझे नहीं लगता वोह अमिताभ के आस पास भी पहुच पाते हैं ना तो अभिनय मैं , ना तो कद मैं और हिन्दी ज्ञान मैं तो कोई मुकाबला ही नहीं है । अमिताभ वास्तव मैं आद्रित्य और अनुपम है .
Friday, October 16, 2009
हैप्पी दिवाली
आज दिवाली है ,रह रह कर भारतवर्ष की याद आ रही है , कैसी कैसी मिठाई खाने को मिलती थी ,एक मिठाई मुझे आज सुबह से याद आ रही है , वोह है बाल मिठाई , बाल मिठाई कुमाओं की पारम्परिक मिठाई है , डेल्ही मेशायद ही मिले इसे लेने के लिए आप को नानिताल या अल्मोरा जाना होगा। बढ़ी ही सावादिष्ट मिठाई है , बस अन्दर जाते ही मुहँ मैं घुल जाए । यहाँ दस पन्दरा हज़ार मील दूर अमेरिका मैं मिठाई मिलती तो है लकिन वोह बात कहाँ । आज या कल ओ़बामाजी ने भी दिवाली मनाई दीप जलया संदेश दिया .बीस से अधिक वर्ष हो गए पर मन भारत मैं ही रमता है , रफी साहब का गाना याद आ रहा है , कभी मगराब से मसरफ मिला है न मिलेगा , जहाँ का फूल है जो वहीँ पे वोह खिलेगा , यहाँ मैं अजनबी हूँ , यहाँ मैं अजनबी हूँ .
Monday, October 5, 2009
phissadi
ब्राजील मैं आजकल जश्न का माहुल है, और चाइना तो अपना वर्चच्सव दिखा ही चुका है , अब बच गया है भारत , कोमोंवेअल्थ खेल करवाना ही एक जी का जंजाल बना हुआ है । मुझे लगता है भारत शुरआत से ही खेलों के प्रति एक उदासीन देश है , हमरे यहाँ खेल की महत्ता कभी समझी ही नहीं गई । बात ७० के दशक की है जब मैं छोटा था मेरी माताजी हमेशा कहती थी अरे खेल मैं क्या रखा है , पढ़ाई करो वरना फिसड्डी रहोगे । खेलों मैं शुरुआत से राजनीती और भास्ताचार का दबदबा रहा , कोई राजनेता भारतीय हॉकी संघ पर कब्जा कर के बैठ गया ,तो कोई फुटबॉल और कुश्ती को अपनी जागीर समझने लगा .अगर यह खेल खेले भी गए तो केवल रेलवे और एयर इंडिया मैं नौकरी पाने के लिए .इन सभी खेलों को खेलने वाले खिलाड़ियों की दुर्धाशा जगात्जहिर है.हम सभी को व्यक्तिगत आधार पे भी खेलों के प्रति अपने दृष्टिकोण को को बदलने की आवशयकता है .
Thursday, October 1, 2009
मराठी मानुष
आज कल आए दिन समाचरोंमैं राज ताखरे , बाला साहेब , कभी उनके आपसी मन मुटाव की खबरें आती रहती है यह सभी महान नेता मराठी मानुष का मुद्दा बड़ी गरमजोशी से उअठाते हैं ,ऐसे ही एक मराठी मानुष का किस्सा मुझे भी याद आता है । बात आज से करीब २८ वर्ष पहले की है , उन दिनों हम देल्ली की सरकारी कालोनी सरोजिनी नगर मैं रहते थे , मैं और मेरी माँ , बहिन की शादी हो चुकी थी मैं रहा होऊंगा , कोई १६ या १७ वर्ष का , स्कूल का लगभग आखिरी साल था , हामरे माकानो के बीच एक बुढासा , कमजोर , खांसता हुआ आदमी घूमता रहता था , हुलिए से चोकीदार लगता था , उसके पास एक बड़ा सा डंडा भी रहता था ,कभी यहाँ बैठ जाता , तो कभी वहां बैठ जाता था , मगर रहता हामरे एरिया मैं ही ,हामरे मकानों मैं से ही उसे कोई भोजन दे देता , कोई रघु कहता , कोई रघुनाथ , बच्चे खेलते उस से बोलते तो हल्का सा मुस्कुराता और मराठी भाषा मैं कुछ बुदबुदाता , ऐसे व्यक्ति को पागल , बेघर , या किसी भी इस पारकर की संज्ञादी जा सकती है .कभी रघुनाथ सवयम से ही मराठी भाषा मैं बातें करता कभी वोह लंबे सा नोबुक कुछ न कुछ मराठी भाषा मैं लिखता रहता , दिन भर इधर , उधर विचरने के बाद रात को वोह हामारे सिदिहियौं मैं सो जाता , अगर सर्दी हो तो पुराने कम्बल ढांप लेता । मुझे सुबह पाठशाला जाते होए यूं प्रतीत होता मनो kapodoanकी कोई घटरी पड़ी हो । सुबह , सुबह मैं उसे चाय नियमपूर्वक देता था जो मेरी माँ हमेशा बनती थी , चाय बनते समय मेरी माँ के चेहरे पर सम्पूर्ण संतुस्ठी का भावः होता था , ऐसी ही एक सर्दी की सुबह जब मैंने मरठी मानुष रघुनाथ को चाय देने की कोशिश की तो वोह हिला न दुला , मुझे आभास हो गया की शायद , उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो गई है .हामरे पड़ोस मैं रहने वाले सज्जन पुरूष सुदेश जी ने रघुनाथ का अक्न्तिम संसास्कर संपून विधि विधान के साथ करवाया । मुझे और सभी वहां रहने वाले ऊतर वासिओं को लगा ,जैसे कोई अपना चला गया । पता नहीं कब तक राज ठाकरे मराठी मानुष के नाम पर अपना ऊलू सीधा करते रहेंगे । हिन्दी के कवि अशोक चरक्धर की कविता याद आ रही है जसका भावः कुछ इस तरह से है की हम लोग कब तक आपस मैं जाती के आधार पर लड़ते मरते रहेंगे , क्या तुम्हरा खून लाल और मेरा नीला है .
Monday, September 28, 2009
विजयदशमी
आज विजयदशमी है ,मुझे याद है जब छोटे थे ,तो इन दिनों का एक अलग ही आनंद था , डेल्ही की हलकी सी सर्दी रात एक दो बजे तक रामलीला होती थी श्री राम का दर्शन , लक्ष्मण का क्रोधित हो जाना, माता सीता का विलाप, हनुमान का वायु मैं उअधना , अंगद का पाऊँ जमा देने , इन सब एक अलग ही रस था वह आनंद गद्देदार सोफे मैं बैठ कर ब्लू राय डीवीडी चला कर भी नहीं मिलता । मेरे एक मामा है उनका नाम जगदीश है मगर प्यार से हमलोग उन्हें जगमा kआहते हैं , जगमा बांस को काटकर उसमे सुटली बाँध कर जो तीरकमान बनते थे ,विजयदशमी के दिन भोजन भी विशेष ही बनता था माँ सुबह से ही भोजन की तयारी लग जाती थी , दही बड़े , रायता , माँ की दाल .बाजार मैं दिवाली के आगमन की सुग्भुगाहत सुरु हो जाती थी , दुकाने आतिशबाजी से सजने लगती थी सारे बाजार के ऊपर रंग बिरंगी रोशनी और तरह तरह की साजावत । चीनी के खिलोनों को देख कर लार टपकने लगती थी , फिर मिठाई , यह सब उस ज़माने की बात है जब जीवन सरल था , टीवी इंतना विशाल नहीं था , बाजार थे, माल ने तब पैर पसारने सुरु नहीं किए थे , मारुती का आगमन बस हो ही रहा था , मुद्रिका सेवा रिंग रोड पर अपनी मंथर गति से चलती रहती थी , जीवन मंथर था पर मधुर था .
Saturday, September 26, 2009
जय हिंद
आज कल नौकरी नहीं है तो क्रेडिट मैं भी गड़बढ़ हो रही है बिलों के भुगतान समय अनुसार कर नही पा रहा हूं। आज सुबह तीन फ़ोन आयये तीनों भारत से थे और तीनों भुगतान के सिलसिले मैं , फ़ोन करने वाले तीन भारतीये युवक थे ,तीनों ने अंगेरजी मैं बात की ,परन्तो लहजा भारतीय बात चीत का ढंग भारतीय ,फिर भारतीय लहजे को पकड़ना कोई कठिन नहीं.अब मैं असली मुद्दे यानि उनके नाम पर आता हूं , तीनो ने अपना नाम वेदेशी बतया , एक ने बतया अलेक्स ,एक ने लुके,और एक ने टोनी , अब प्रशन यह है तीनों ने कॉल करने से पहले मेरा नाम पड़ा होगा , तीनो ने मुझे नाम से सम्भोधित किया और सम्पूर्ण वार्तालाप अंगेरजी मैं हुआ । अगर आप भारत से हैं और एक भारतीय से बात करने वाले हैं तो मात्रभाषा के प्रयोग मैं कैसी शर्म?कैसी हित्किचाहत ?अगला प्रशन तीन ने अंग्रेज़ी नामों का प्रयोग किया मुझे शत प्रतिशत विश्वास की उनके नाम कुछ और थे । मुझे अमेरिका रहते होए काफी समय बीत गया पर मैंने अपने नाम को बदलने की कभी कोशिश नहीं की । गोरों को समय लगता है , मगर फिर आदत पड़ जाती है । कितने अमेरिका वासिओं ने अपना नाम हम भारतियों की सुविधा के लिए बदला है? सुना है कॉल सेंटरों मैं ऐसा सिखया जाता है , मुझे तो नई किस्म की गुलामी की बू आ रही है । आप लोग कॉल सेंटर मैं काम करने वाले युवा हैं इंकार कीजिये , विरोध कीजिये कहिये मैं अपने नाम का ही प्रयोग करोगा रोसा पार्क की तरह, भगत सिंह की तरह , अरे भगत सिंह का जनम दिन किसी को याद हैं ?कैसे याद होगा कॉल सेण्टर मैं तो शायद ४ जुलाई की छुट्टी होती है। जय hind
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