Sunday, October 25, 2009

बिग बी इन बिग b

आजकल बिग बॉस नमक कार्य्रक्रम टीवी खूब ही प्रसिद है मुझे इस कार्यक्रम मैं या इसके कलाकारों मैं कोई उत्सुकता नहीं है , मुझे सिर्फ़ इसके सूत्रधार श्री अमिताभ बच्चन को वार्तालाप करते है देख कर असीम अन्नंद की अनुभूति होती है , अमिताभ की हिन्दी पर पकड़ और उनकी गहरी आवाज सुनकर मन गदगद हो जाता है , और मैं मंत्रमुग्ध हो जाता होऊं। अमिताभ के व्यक्तित्व मैं एक अनूठा ही आकर्षण है , और हिन्दी भाषा पर उनका सवाभाविक ज्ञान है , शाहरुख़ बेशक अच्छे कलाकार हैं पर मुझे नहीं लगता वोह अमिताभ के आस पास भी पहुच पाते हैं ना तो अभिनय मैं , ना तो कद मैं और हिन्दी ज्ञान मैं तो कोई मुकाबला ही नहीं है । अमिताभ वास्तव मैं आद्रित्य और अनुपम है .

Friday, October 16, 2009

हैप्पी दिवाली

आज दिवाली है ,रह रह कर भारतवर्ष की याद आ रही है , कैसी कैसी मिठाई खाने को मिलती थी ,एक मिठाई मुझे आज सुबह से याद आ रही है , वोह है बाल मिठाई , बाल मिठाई कुमाओं की पारम्परिक मिठाई है , डेल्ही मेशायद ही मिले इसे लेने के लिए आप को नानिताल या अल्मोरा जाना होगा। बढ़ी ही सावादिष्ट मिठाई है , बस अन्दर जाते ही मुहँ मैं घुल जाए । यहाँ दस पन्दरा हज़ार मील दूर अमेरिका मैं मिठाई मिलती तो है लकिन वोह बात कहाँ । आज या कल ओ़बामाजी ने भी दिवाली मनाई दीप जलया संदेश दिया .बीस से अधिक वर्ष हो गए पर मन भारत मैं ही रमता है , रफी साहब का गाना याद आ रहा है , कभी मगराब से मसरफ मिला है न मिलेगा , जहाँ का फूल है जो वहीँ पे वोह खिलेगा , यहाँ मैं अजनबी हूँ , यहाँ मैं अजनबी हूँ .

Monday, October 5, 2009

phissadi

ब्राजील मैं आजकल जश्न का माहुल है, और चाइना तो अपना वर्चच्सव दिखा ही चुका है , अब बच गया है भारत , कोमोंवेअल्थ खेल करवाना ही एक जी का जंजाल बना हुआ है । मुझे लगता है भारत शुरआत से ही खेलों के प्रति एक उदासीन देश है , हमरे यहाँ खेल की महत्ता कभी समझी ही नहीं गई । बात ७० के दशक की है जब मैं छोटा था मेरी माताजी हमेशा कहती थी अरे खेल मैं क्या रखा है , पढ़ाई करो वरना फिसड्डी रहोगे । खेलों मैं शुरुआत से राजनीती और भास्ताचार का दबदबा रहा , कोई राजनेता भारतीय हॉकी संघ पर कब्जा कर के बैठ गया ,तो कोई फुटबॉल और कुश्ती को अपनी जागीर समझने लगा .अगर यह खेल खेले भी गए तो केवल रेलवे और एयर इंडिया मैं नौकरी पाने के लिए .इन सभी खेलों को खेलने वाले खिलाड़ियों की दुर्धाशा जगात्जहिर है.हम सभी को व्यक्तिगत आधार पे भी खेलों के प्रति अपने दृष्टिकोण को को बदलने की आवशयकता है .

Thursday, October 1, 2009

मराठी मानुष

आज कल आए दिन समाचरोंमैं राज ताखरे , बाला साहेब , कभी उनके आपसी मन मुटाव की खबरें आती रहती है यह सभी महान नेता मराठी मानुष का मुद्दा बड़ी गरमजोशी से उअठाते हैं ,ऐसे ही एक मराठी मानुष का किस्सा मुझे भी याद आता है । बात आज से करीब २८ वर्ष पहले की है , उन दिनों हम देल्ली की सरकारी कालोनी सरोजिनी नगर मैं रहते थे , मैं और मेरी माँ , बहिन की शादी हो चुकी थी मैं रहा होऊंगा , कोई १६ या १७ वर्ष का , स्कूल का लगभग आखिरी साल था , हामरे माकानो के बीच एक बुढासा , कमजोर , खांसता हुआ आदमी घूमता रहता था , हुलिए से चोकीदार लगता था , उसके पास एक बड़ा सा डंडा भी रहता था ,कभी यहाँ बैठ जाता , तो कभी वहां बैठ जाता था , मगर रहता हामरे एरिया मैं ही ,हामरे मकानों मैं से ही उसे कोई भोजन दे देता , कोई रघु कहता , कोई रघुनाथ , बच्चे खेलते उस से बोलते तो हल्का सा मुस्कुराता और मराठी भाषा मैं कुछ बुदबुदाता , ऐसे व्यक्ति को पागल , बेघर , या किसी भी इस पारकर की संज्ञादी जा सकती है .कभी रघुनाथ सवयम से ही मराठी भाषा मैं बातें करता कभी वोह लंबे सा नोबुक कुछ न कुछ मराठी भाषा मैं लिखता रहता , दिन भर इधर , उधर विचरने के बाद रात को वोह हामारे सिदिहियौं मैं सो जाता , अगर सर्दी हो तो पुराने कम्बल ढांप लेता । मुझे सुबह पाठशाला जाते होए यूं प्रतीत होता मनो kapodoanकी कोई घटरी पड़ी हो । सुबह , सुबह मैं उसे चाय नियमपूर्वक देता था जो मेरी माँ हमेशा बनती थी , चाय बनते समय मेरी माँ के चेहरे पर सम्पूर्ण संतुस्ठी का भावः होता था , ऐसी ही एक सर्दी की सुबह जब मैंने मरठी मानुष रघुनाथ को चाय देने की कोशिश की तो वोह हिला न दुला , मुझे आभास हो गया की शायद , उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो गई है .हामरे पड़ोस मैं रहने वाले सज्जन पुरूष सुदेश जी ने रघुनाथ का अक्न्तिम संसास्कर संपून विधि विधान के साथ करवाया । मुझे और सभी वहां रहने वाले ऊतर वासिओं को लगा ,जैसे कोई अपना चला गया । पता नहीं कब तक राज ठाकरे मराठी मानुष के नाम पर अपना ऊलू सीधा करते रहेंगे । हिन्दी के कवि अशोक चरक्धर की कविता याद आ रही है जसका भावः कुछ इस तरह से है की हम लोग कब तक आपस मैं जाती के आधार पर लड़ते मरते रहेंगे , क्या तुम्हरा खून लाल और मेरा नीला है .