अरे यह क्या हो रहा है कलमाड़ी साहब की तबियत बिगड़ रही है? कभी कहते हैं की यादाशत की बीमारी से पीढ़ित हें, कभी कहते हें की मुझे अपने संसाद के कर्तव्य याद आ रहे हें । कलमाड़ी जी बेक़रार हें तिहार से बहार आने को मगर हवा कुछ उनके खिलाफ बह रही है। श्री कलमाड़ी प्रशन्षा के पात्र हें इंतना सब कुछ होने के बाद भी चहेरे पर शर्म की हलकी सी लकीर भी नहीं हें। आखों मैं भी गजब की बेशर्मी दिखाई पढती है , और चलने का अंदाज़ भी ऐसा गली के दादा जैसा , की जिसने जो भी कुछ करना है कर लो। मुझे लगता हें की हमारे प्राथमिक स्चूलों मैं श्री कलमाड़ी पर एक पाठ तो होना ही चहिये, और महामहिम श्री राजा पर तो पूरी पुस्तक ।
कवि प्रदीप जिस प्रकार शास्त्रीजी और गाँधी जी पर गीत रचते थे , ठीक उसी प्रकार श्री कलमाड़ी और महामहिम राजा पर गीत रचे जाने चहिये । दे दिए हमे खेल गटक के करोणों का माल , ऐ कोम्मोंवेअल्थ के संत तूने कर दिया कामाल। और महामहिम राजा की महिमा तो अपरमपार हें .