Monday, October 5, 2009
phissadi
ब्राजील मैं आजकल जश्न का माहुल है, और चाइना तो अपना वर्चच्सव दिखा ही चुका है , अब बच गया है भारत , कोमोंवेअल्थ खेल करवाना ही एक जी का जंजाल बना हुआ है । मुझे लगता है भारत शुरआत से ही खेलों के प्रति एक उदासीन देश है , हमरे यहाँ खेल की महत्ता कभी समझी ही नहीं गई । बात ७० के दशक की है जब मैं छोटा था मेरी माताजी हमेशा कहती थी अरे खेल मैं क्या रखा है , पढ़ाई करो वरना फिसड्डी रहोगे । खेलों मैं शुरुआत से राजनीती और भास्ताचार का दबदबा रहा , कोई राजनेता भारतीय हॉकी संघ पर कब्जा कर के बैठ गया ,तो कोई फुटबॉल और कुश्ती को अपनी जागीर समझने लगा .अगर यह खेल खेले भी गए तो केवल रेलवे और एयर इंडिया मैं नौकरी पाने के लिए .इन सभी खेलों को खेलने वाले खिलाड़ियों की दुर्धाशा जगात्जहिर है.हम सभी को व्यक्तिगत आधार पे भी खेलों के प्रति अपने दृष्टिकोण को को बदलने की आवशयकता है .
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