Tuesday, September 22, 2009

सल्लू भाई की नई film

यार आदमी की जॉब चली जाए और धक्के खाने पड़े तो बड़ी हालत ख़राब होती है । कोई जमाना था जब अमरीका मैं इंतनी जॉब होती थी की गिनती करो तो ख़तम ही न हो अब यह हॉल है की उर्दू का एक शेर याद आ रहा है आज इनती भी मयस्सर नही मयखाने मैं जिनती हम छोड़ दिया करते थे पैमाने मैं। तो जनाब धक्के खाते होए चार महीने बीत चुके मैंने सोचा सब चिंता छोड़ कर कुछ आनंद प्राप्ति की जाए और एक मनोरंजक चलचित्र देखा जाए तो अपने सुपुत्र के साथ अपनराम पहुँच
गए सिनेमा मैं मेरा सुपुत्र सिर्फ़ नाम का ही इंडियन है हिन्दी भाषा उअसके लिए ऐसे है जैसे कला अक्षर भैसें बराबर पर उसने पुरे के पुरे चलचित्र का भरपूर आनंद उठाया अरे फ़िल्म का नाम तो मैं बतना ही भूल गया वांटेड अपने सल्लू भाई की फ़िल्म अच्छी बन बन पड़ी है आज कल इंडियन फिल्मकारों को कहनी कहने का नया अंदाज़ आ गया है पुरानी शराब को नए बोतल मैं नया लेबल के साथ जय हो प्रुभु फ़िल्म वही जो दर्शक मन भये

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