Monday, September 28, 2009

विजयदशमी

आज विजयदशमी है ,मुझे याद है जब छोटे थे ,तो इन दिनों का एक अलग ही आनंद था , डेल्ही की हलकी सी सर्दी रात एक दो बजे तक रामलीला होती थी श्री राम का दर्शन , लक्ष्मण का क्रोधित हो जाना, माता सीता का विलाप, हनुमान का वायु मैं उअधना , अंगद का पाऊँ जमा देने , इन सब एक अलग ही रस था वह आनंद गद्देदार सोफे मैं बैठ कर ब्लू राय डीवीडी चला कर भी नहीं मिलता । मेरे एक मामा है उनका नाम जगदीश है मगर प्यार से हमलोग उन्हें जगमा kआहते हैं , जगमा बांस को काटकर उसमे सुटली बाँध कर जो तीरकमान बनते थे ,विजयदशमी के दिन भोजन भी विशेष ही बनता था माँ सुबह से ही भोजन की तयारी लग जाती थी , दही बड़े , रायता , माँ की दाल .बाजार मैं दिवाली के आगमन की सुग्भुगाहत सुरु हो जाती थी , दुकाने आतिशबाजी से सजने लगती थी सारे बाजार के ऊपर रंग बिरंगी रोशनी और तरह तरह की साजावत । चीनी के खिलोनों को देख कर लार टपकने लगती थी , फिर मिठाई , यह सब उस ज़माने की बात है जब जीवन सरल था , टीवी इंतना विशाल नहीं था , बाजार थे, माल ने तब पैर पसारने सुरु नहीं किए थे , मारुती का आगमन बस हो ही रहा था , मुद्रिका सेवा रिंग रोड पर अपनी मंथर गति से चलती रहती थी , जीवन मंथर था पर मधुर था .

1 comment:

  1. बहुत अच्छा संस्मरण है शुभकामनायें

    ReplyDelete